ज्ञान, अनुभव, समझ, सामान्य ज्ञान और अंतर्दृष्टि का उपयोग करके समझ, कार्य या शिथिलता सोचने और कार्य करने की क्षमता है। बुद्धि निष्पक्ष निर्णय, करुणा, अनुभवात्मक आत्म-ज्ञान, आत्म-पारगमन और अनासक्ति, और नैतिकता और परोपकार जैसे गुणों के साथ जुड़ी हुई है।उपनिषदों में दो तरह की शिक्षा बताई गई है एक विद्या और दूसरी अविद्या विद्या से उपनिषद का अभिप्राय है कि भौतिक ज्ञान जिसे आजकल साइंस और तकनीक कहा जाता है वह भौतिक जगत का ज्ञान है जो जीवन के भौतिक पल्स के लिए अत्यंत आवश्यक है साइंस के विकास से ही इस समय लोग इतनी सुविधाएं में जी रहे हैं बाहर से पृथ्वी स्वर्ग हो गई है लेकिन इस शिक्षा का दूसरा पहलू है आंतरिक जिसे विद्या कहा गया है वह पहलू आधुनिक शिक्षा में बिल्कुल ही अछूता रह गया।
साधारणता भाषा कोर्स में खोजने जाएंगे तो अविद्या का अर्थ होगा अज्ञान लेकिन उपनिषद अविद्या का अर्थ कहते हैं कि ऐसा ज्ञान जो ज्ञान है जैसा प्रतीत होता है फिर भी स्वयं व्यक्ति अज्ञानी रह जाता है ऐसा ज्ञान जिससे हम सब कुछ जान लेते हैं पर स्वयं से अपरिचित रह जाते हैं जो ज्ञान का भ्रम पैदा करता है ऐसी विद्या को उपनिषद अविद्या कहते हैं और विद्या से अर्थ है वैसी विद्या जिससे स्वयं को नहीं जाना जाता लेकिन और सब जान लिया जाता है और विद्या से दूसरों को पूरे जगत को जाना जा सकता है लेकिन स्वयं को नहीं और विद्या के सहारे मनुष्य चांद पर तू पहुंच गया अपनी तक पहुंचने का कोई रास्ता वह ढूंढ नहीं सका बहुत बौद्धिक ज्ञान विद्या है आत्मिक ज्ञान विद्या है आज दुनिया में इतनी शांति इतनी अहिंसा इसलिए है कि जानकारि आचरण नहीं बनती सभी जानते हैं कि हिंसा बुरी है पर क्रोध के में हम एक ही हो जाते हैं प्रेम की बातें सभी करते हैं लेकिन कोई नहीं जानता कि प्रेम कैसे करें जितनी अब या विकसित हुई है उसी के अनुपात में विद्या विकसित होना आवश्यक है ऐसा नहीं हुआ है।
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